इंदूरमध्ये काही दिवसांपूर्वी तिहेरी हत्याकांड होण्याची दुर्दैवी घटना घडली. अवघ्या काही दिवसांपूर्वीच उज्जेनहुन इंदूरला वास्तव्यासाठी आलेल्या एकाच कुटुंबातल्या तिघांची हत्त्या करण्यात आली. पोलिसांनी तीन-चार दिवसातच संशयितांना ताब्यात घेतले आहे. त्यांच्याकडून रोख रक्कम व दागिन्यांसह सुमारे दीड लाखांचा ऐवज जप्त करण्यात आला आहे. ताब्यात घेण्यात आलेल्या संशयितांमध्ये एक युवती आणि दोन युवकांचा समावेश आहे...। या दुर्दैवी घटनेविषयी महाबली ब्लॉगचे नियमित वाचक रविंद्र बर्गले यांनी पाठविलेली ही प्रतिक्रिया:
इस नृशंस और वीभत्स घटना से सभी को झकझोर दिया है. लेकिन विचार करें तो पाते हैं, कि आधुनिक जीवन शैली से उपजे भटकाव और विकृति के मूल में वह आधुनिक जीवन-शैली है, जो युवा मनोविज्ञान को फैशन, लड़के-लड़कों की मित्रता, प्यार, फिल्मी ग्लैमर, क्लब और रेस्त्रां में मौज, शराबखोरी, दादागिरी, हिंसा के प्रति आकर्षित करती है. वास्तव में इस घटना के लिए समाज और समाज में नैतिकता और व्यवहारिकता के मानदंड निर्धारित करने वाला अन्य वर्ग (इनमें मुख्य रूप से मीडिया शामिल है) भी समान रूप से जिम्मेदार है, जिसने प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से अश्लीलता, अनैतिकता, और चारित्रिक पतन को मॉर्डनाइज़ेशन, ग्लोबलाइज़ेशन, फिल्मी फैशन, लाइफ-स्टाइल जैसे मिथकों की आड़ में न्यायोचित बनाया है. प्रिंट मीडिया के वे अखबार भी जिम्मेदार हैं- जो बाकायदा वेलेंटाइन डे, रोज़-डे और फ्रेंडशिप डे के परिशिष्ट निकाल कर मध्यमवर्गीय घर-परिवारों में ऐसी अनैतिकता की न केवल पैरवी कर रहे हैं, बल्कि उसे व्यवसायिकता के कुत्सित उद्देश्यों की पूर्ति के लिए दुराग्रहपूर्वक उन्हें प्रोत्साहित भी कर रहे हैं. यदि कुछ समय पूर्व बजरंग-दल द्वारा सार्वजनिक स्थानों पर अश्लीलता का प्रदर्शन करने वाले ऐसे वेलेंटाइनी जोड़ों का विरोध किया गया था, तो उसके मूल में समाज को ऐसे अपराधों से बचाने की ही भावना रही होगी, समाज का ठेकेदार बनने की नहीं. लेकिन दुर्भाग्य इस बात का है, कि समाज के वे लोग जिन्हें ऐसी संस्कृति का विरोध, सांस्कृतिक-प्रदूषण का विरोध करना चाहिए, उल्टे बजरंग-दल के पीछे ही हाथ-धोकर पड़ गए थे. खैर यह तो समाज को तय करना है, कि अपराध-मुक्त, सुसंस्कृत और प्रगतिशील सभ्य और स्वस्थ समाज के उसके मानदंड और कसौटी क्या हैं? उसकी प्राप्ति का मार्ग वेलेंटाइन-डे, रोज़-डे, फ्रेंडशिप-डे, शराबखोरी, डांस पार्टी, कॉकटेल पार्टी, फिल्मी फैशन, बुजुर्गों की अवमानना,, प्यार, ग्लैमर, शराबखोरी और हिंसा से होकर जाता है, या वे सुसंस्कृत, प्रगतिशील, सभ्य, सबल और स्वाभिमानी जीवन-शैली के पालन में जीवन की पूर्णता देखते हैं.
यदि समाज और मीडिया के सिपाही इस घटना का दोष पुलिस-प्रशासन या अपराधियों के बेखौफ होने या एक-दूसरे पर मढ़ने के बजाय आत्म-अवलोकन और मंथन करेंगे तो स्पष्ट दिखाई देगा कि ऐसे अपराधों के मूल में जो अनैतिकता, अश्लीलता और चारित्रिक-पतन है, वह समाज में कहां से प्रवेश कर रहे हैं. व्यक्ति, परिवार, समाज के साथ-साथ मीडिया को भी अपनी सकारात्मक भूमिका पर पुनर्विचार करना होगा.
इस नृशंस और वीभत्स घटना से सभी को झकझोर दिया है. लेकिन विचार करें तो पाते हैं, कि आधुनिक जीवन शैली से उपजे भटकाव और विकृति के मूल में वह आधुनिक जीवन-शैली है, जो युवा मनोविज्ञान को फैशन, लड़के-लड़कों की मित्रता, प्यार, फिल्मी ग्लैमर, क्लब और रेस्त्रां में मौज, शराबखोरी, दादागिरी, हिंसा के प्रति आकर्षित करती है. वास्तव में इस घटना के लिए समाज और समाज में नैतिकता और व्यवहारिकता के मानदंड निर्धारित करने वाला अन्य वर्ग (इनमें मुख्य रूप से मीडिया शामिल है) भी समान रूप से जिम्मेदार है, जिसने प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से अश्लीलता, अनैतिकता, और चारित्रिक पतन को मॉर्डनाइज़ेशन, ग्लोबलाइज़ेशन, फिल्मी फैशन, लाइफ-स्टाइल जैसे मिथकों की आड़ में न्यायोचित बनाया है. प्रिंट मीडिया के वे अखबार भी जिम्मेदार हैं- जो बाकायदा वेलेंटाइन डे, रोज़-डे और फ्रेंडशिप डे के परिशिष्ट निकाल कर मध्यमवर्गीय घर-परिवारों में ऐसी अनैतिकता की न केवल पैरवी कर रहे हैं, बल्कि उसे व्यवसायिकता के कुत्सित उद्देश्यों की पूर्ति के लिए दुराग्रहपूर्वक उन्हें प्रोत्साहित भी कर रहे हैं. यदि कुछ समय पूर्व बजरंग-दल द्वारा सार्वजनिक स्थानों पर अश्लीलता का प्रदर्शन करने वाले ऐसे वेलेंटाइनी जोड़ों का विरोध किया गया था, तो उसके मूल में समाज को ऐसे अपराधों से बचाने की ही भावना रही होगी, समाज का ठेकेदार बनने की नहीं. लेकिन दुर्भाग्य इस बात का है, कि समाज के वे लोग जिन्हें ऐसी संस्कृति का विरोध, सांस्कृतिक-प्रदूषण का विरोध करना चाहिए, उल्टे बजरंग-दल के पीछे ही हाथ-धोकर पड़ गए थे. खैर यह तो समाज को तय करना है, कि अपराध-मुक्त, सुसंस्कृत और प्रगतिशील सभ्य और स्वस्थ समाज के उसके मानदंड और कसौटी क्या हैं? उसकी प्राप्ति का मार्ग वेलेंटाइन-डे, रोज़-डे, फ्रेंडशिप-डे, शराबखोरी, डांस पार्टी, कॉकटेल पार्टी, फिल्मी फैशन, बुजुर्गों की अवमानना,, प्यार, ग्लैमर, शराबखोरी और हिंसा से होकर जाता है, या वे सुसंस्कृत, प्रगतिशील, सभ्य, सबल और स्वाभिमानी जीवन-शैली के पालन में जीवन की पूर्णता देखते हैं.
यदि समाज और मीडिया के सिपाही इस घटना का दोष पुलिस-प्रशासन या अपराधियों के बेखौफ होने या एक-दूसरे पर मढ़ने के बजाय आत्म-अवलोकन और मंथन करेंगे तो स्पष्ट दिखाई देगा कि ऐसे अपराधों के मूल में जो अनैतिकता, अश्लीलता और चारित्रिक-पतन है, वह समाज में कहां से प्रवेश कर रहे हैं. व्यक्ति, परिवार, समाज के साथ-साथ मीडिया को भी अपनी सकारात्मक भूमिका पर पुनर्विचार करना होगा.