मै तो बस, मैं हूँ , जहाँ चाहे जाता हूँ , अपनी जिंदगी जीता हूँ... जीते जीते सोचता हूँ है कितने दिन है और जीना... तुम मनुष्य तो मनुष्य हो लेकिन तुम्हें चाहिये , हर किसीका सर खाना और तकलीफ देके उनका बहूत खून पीना... अरे निकम्मों, जरा बहाओ पसीना , लाओ चार पैसे घर में... फिर समझ में आएगी , कैसी होती है जिंदगी , कैसा होता है वो जीना...