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जिंदगी...

मै तो बस, मैं हूँ , जहाँ चाहे जाता हूँ , अपनी जिंदगी जीता हूँ... जीते जीते सोचता हूँ  है कितने दिन है और जीना... तुम मनुष्य तो मनुष्य हो  लेकिन तुम्हें चाहिये , हर किसीका सर खाना  और तकलीफ देके  उनका बहूत खून पीना... अरे निकम्मों, जरा बहाओ पसीना , लाओ चार पैसे घर में... फिर समझ में आएगी , कैसी होती है जिंदगी , कैसा होता है वो जीना...

विहंगावलोकन

उडुनी नभी उन्हात विहंग दमले पहा दमुनी पंख्यावरी अहो बसलो मिनिटे दहा जाहलो उष्म्याने अवघा बावळा.. आहे शुभ्र पंखा..काळा मी कावळा.. .